Wednesday 6 June 2018

किस करवट बैठेगा सियासत का ऊँट?

किस करवट बैठेगा सियासत का ऊँट?
मुकुल सिंह चौहान।

देश आज एक मरुस्थल की तरह नज़र आ रहा है,क्योंकि एक ओर जहां हरे भरे कृषिप्रधान देश में आज किसान कहीं सब्जियां फेंककर सब्जियों का उचित मूल्य ना मिलने का प्रदर्शन कर रहे हैं तो कहीं पेड़ से लटककर आत्महत्या कर रहे हैं।वहीं दूसरी ओर सीमा से सैनिकों के शव रोज़ ही तिरंगे में लिपटकर आ रहे हैं।इसका मतलब यह है कि "जय जवान जय किसान" वाले भारत में ना ही किसान सुरक्षित नज़र आ रहा है और ना ही जवान।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 1995 से 2014 तक भारतवर्ष में 3,54,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है और 2014 में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े गिनने में बड़ी हेर फेर की गई है,रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या को वर्गों में बाँटकर भ्रम फैलाने की साज़िश की गई है।
NRIOL के आंकड़ों के अनुसार भारत का रक्षा बजट 47.4 अरब डॉलर है।इतना अधिक रक्षा बजट होने के बाद भी सैनिकों को दाल में पानी अधिक होने की शिकायत करनी पड़ती है।किसानों और जवानों के बाद अब "युवा भारत" की भी चर्चा करना आवश्यक है आख़िरकार भारत को युवाओं का देश जो कहा जाता है।भारत का युवा आज बेरोज़गारी के दंश को झेल रहा है नौकरी देने की वादे बस बातें ही हैं और गीतकार इंदीवर पहले ही कह चुके हैं -" कसमें वादें प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या ..."
बहरहाल यह कहना भी ग़लत होगा कि यह बीते कुछ समय से ही हो रहा है क्योंकि हमारे देश में स्थितियां कमोवेश हमेशा से ही ऐसी रही हैं।
सरकार चाहे "यू. पी. ए." की रही हो या "एन.डी. ए." की सभी अपने व्यक्तिगत हितों की पूर्ति में ही लगे रहे।अब चुनाव आ रहे हैं सभी नेता आपकी चौखट पर आएंगे उन्हें समझिए,परखिये और पूरी मानसिक चेतना के साथ चिंतन करिए और फिर लोकतंत्र में अपनी भागीदारी से अपने राष्ट्र को मजबूत करिए।
"सब फैसले होते नही सिक्के उछालकर,
ये देश का मामला है ज़रा देखभालकर।।"

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