Friday 8 September 2017

थप्पड़ से नहीं भारतीय रेल से डर लगता है

          थप्पड़ से नहीं भारतीय रेल से डर लगता है
विश्व में भारतीय रेल की अपनी एक अलग ही पहचान है ।भारतीय रेल मशहूर होने के साथ-साथ बदनाम भी है ।पाठ्यक्रमों में पहली कक्षा में पढ़ाई जाने वाली कविता "रेलगाड़ी रेलगाड़ी छुक छुक छुक छुक... भी प्रश्नों के घेरे में है।बीते कुछ महीनों में पटरी और इंजन के रिश्तो में तनातनी के कयास भी लगाए जा रहे हैं,'काश पटरी की कोई दोस्त इंजन से उसका पैचअप करवा दे' फिर शायद इंजन पटरी पर ही चलें।
भारतीय रेल और जांच का रिश्ता दिन पर दिन मजबूत और मजबूत होता जा रहे है। यह हर हिंदुस्तानी के लिए गर्व की बात है, हर दुर्घटना के बाद एक नई जांच आ जाती है और जांच के परिणाम आने से पहले दूसरी दुर्घटना घटित हो जाती है। अब और कितने अच्छे दिन चाहिए आपको यह फैसला आप खुद ही करिए और हो सके तो रेल के इंजन में नींबू मिर्ची भी बाँध दीजिए।
मैं तो जा रहा हूं-"गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है..."
मुकुल चौहन

आँख मूंद लीजिये

                             आँख मूंद लीजिए
देश डूब रहा है ,लोग डूब रहे हैं पर आप, आप आँख मूंद लीजिए ।क्योंकि आपको ऐसा लग रहा है कि आप सुरक्षित हैं पर दरअसल ऐसा नहीं है। ये आपका वहम है। देश की राजनीति निरंतर दलदल में धंसती जा रही है और हम महज मूकदर्शक बने हुए हैं। सबके अपने-अपने नेता हैं और अपनी -अपनी पार्टियां ।जिनके साथ हम चिपके हुए हैं पांच रुपए वाले फेवीक्विक के जोड़ की तरह ।उनके किए गए हर सही- गलत को बस सही बनाने में हम लगातार कार्यरत हैं।
 राजनीति आज धोखाधड़ी,फरेब और भ्रष्टाचार का पर्याय हो गई है। धर्म की राजनीति तो खूब फल-फूल रही है पर राजनीति का धर्म लगभग खत्म हो गया है। किसी निर्दोष की हत्या पर, किसी गरीब की लाचारी पर, सिंहासन पाने की खरीद-फरोख्त पर आप आंख मूंद लीजिए ,क्योंकि प्रत्यक्ष रुप से यह आप पर कोई प्रभाव नहीं डालती।
बाकी आपका फैसला अंतिम फैसला होगा...
मुकुल सिंह चौहान

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