Wednesday 4 July 2018

चोर को सज़ा कानून नहीं पब्लिक देती है-थानाध्यक्ष

चोर को सज़ा कानून नहीं पब्लिक देती है-थानाध्यक्ष

संविधान ,न्यायव्यवस्था और कानून में यक़ीन करने वाले लोग बहुत कम बचे हैं। इस संवैधानिक व्यवस्था से बग़ावत के कई कारण हो सकते हैं। इसका कारण भारतीय न्यायव्यवस्था के भीतर राज कर रहा भ्रष्टाचार हो सकता है, न्यायव्यवस्था की जटिल प्रणाली हो सकती है या फिर बस लोगों ने फ़िल्म दबंग के इस डायलॉग को  - "कि यहाँ वक़ील भी हम है,गवाह भी हम है और जज भी हम" को बहुत सीरियसली ले लिया है।
पब्लिक खुद को दबंग वाला सलमान समझने लगी है अब सवाल ये है कि मैं ये सब क्यों कह रहा हूँ, तो सुनिए-----
किस्सा कुछ यूँ है कि हम ,यानी मैं और मेरा एक मित्र दैनिक जागरण ऑफिस से घंटों कानून और संविधान पर अपने सब-एडिटर साहब से चर्चा करके बाहर निकले की तभी रावतपुर क्रॉसिंग के पास भीड़ ही भीड़ दिखी हम पास पहुंचे तो देखा कि लगभग 25 साल का एक लड़का जमीन पर बेसुध गिरा पड़ा है और लोग उसे बुरी तरह से मार रहे हैं । यह देखकर तरस आ गया ,मैं और मेरे मित्र ने भीड़ में घुसकर उस लड़के को बचा लिया और पूरा मामला जानने की कोशिश की तो पता चला कि उस लड़के ने चोरी का प्रयास किया था। लड़का निसंदेह गुनाहगार था पर प्रश्न यह उठता है कि उसको सज़ा आखिर भीड़ कैसे दे सकती है? हैरानी की बात यह है कि उस स्थान पर उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सिपाही मौजूद होकर तमाशा देख रहे थे। भीड़ उस पर पागलों की तरह टूट पड़ी थी। उसको भीड़ से बचाने के लिये बहुत मशक्कत करनी पड़ी । भीड़ को चीख चीख कर समझाया। हमने पुलिस को फ़ोन किया  उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरी फुर्ती दिखाई और पूरे 20 मिनट में हमारे सामने आ गयी, माफ करियेगा " प्रकट हो गयी"।
हम थाने पहुँचे, बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में दो लोग 3 सितारे जड़ी वर्दी पहने बैठे हुए थे और बाकी पुलिस वालों ने उन्हें घेर रखा था। मैं 19 साल की उम्र में पहली बार थाने गया था पर वहाँ जकर पता चला कि जो लड़का पकड़ा गया है वो अक्सर थाने आता रहता है। उसको देखकर थानाध्यक्ष ने हमसे कहा ये हमारा पुराना ग्राहक है। गांजा,चरस,अफीम बेचना और मोबाइल चोरी करना इसका रोज़ का धंधा है।
हमने पूछा -सर ,अब क्या करेंगे?
तो थानाध्यक्ष साहब ने हमसे कहा- "भैया इसका हम क्या करें आप बताओ?
हमने कहा सज़ा दीजिये
-तो साहब बोले कि इन्हें कालापानी भेज दें ,कि इन्हें फांसी चढ़ा दें? जेल में इनके जैसों को रखेंगे तो बाकी इनसे बेहतरीन, सर्वगुणसम्पन्न और कद्दावर अपराधी कहाँ जाएंगे?
हमने पूछा फिर सर इनकी सज़ा क्या है ?
थानाध्यक्ष साहब ने जो कहा वो सबसे महत्वपूर्ण और चिन्ताजनक है-"इनकी सज़ा वही थी जिससे आपने इन्हें बचा लिया मतलब इनको सज़ा पब्लिक ही देती है।एक मात्र उपाय है पब्लिक के हाँथो जमकर तुड़ाई"।
थानाध्यक्ष के मुँह से यह बात सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई और फिर उस भीड़ का शोर मेरे कानों में गूंजने लगा। लोग जो कह रहे थे शायद वही सही था कि मारो इसको... क्योंकि पुलिस तो इसे छोड़ ही देगी। इसकी सज़ा यही है।
इस पूरे वाक़िये ने काफी कुछ सिखा और बता दिया।

-मुकुल सिंह चौहान

Monday 2 July 2018

कौन है देश की दुर्दशा का ज़िम्मेदार?

कौन है देश की दुर्दशा का ज़िम्मेदार?

जब राजनीति शोर मचा रही हो तो जनता की आवाज आखिर कैसे सुनाई देगी? आज देश की राजनीति ने जनता को जाति-धर्म के मकड़जाल में फंसा दिया है। हम अपने अतीत से प्रेरणा ना लेकर भविष्य की ओर निवेदित होते जा रहे हैं। हम इतिहास को झुठला देना चाहते हैं। इस राजनीति ने खुद को सुरक्षित रखने का एक बहुत अच्छा रास्ता निकाल लिया है।जब-जब जनता सवाल पूछे कोई मुद्दा उठा लो और उसको राष्ट्रीय मीडिया के हाथों में गेंद की तरह खेलने के लिए सौंप दो और मीडिया के मंझे हुए खिलाड़ी कोट, पैंट और टाई पहनकर उस मुद्दे से खेलते रहेंगे ।

यह आज ही नहीं हो रहा है इतिहास गवाह है इस तरह की राजनीति देश में हमेशा से होती रही है और इसका लाभ  राजनीति को हमेशा मिला है। इतने शोर में ना तो किसान के मुद्दों से राजनीति को सामना करना पड़ेगा,ना छात्रों के सवाल सुनाई देंगे ,ना पानी की त्रासदी की आवाज सुनाई देगी,न बिजली का संकट सुनाई देगा और राजनीति दिन प्रतिदिन चमकती रहेगी और निखरती रहेगी ।यह शोर मचाना भारतीय राजनीति में किसी एक दल का काम भी नहीं है ।हर पार्टी इस शोर से अपना शोर मिलाकर इस शोर को और ऊँचा स्वर देती है।सब बराबर के हिस्सेदार हैं  और इस देश की दुर्दशा के बराबर के जिम्मेदार। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव नज़दीक हैं ऐसे में आखिर कौन सुनेगा जनता की आवाज़ ?
-मुकुल सिंह चौहान

चोर को सज़ा कानून नहीं पब्लिक देती है-थानाध्यक्ष

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